काली कान्त झा "बूच"क रचना संसार मे अपनेक स्वागत अछि

Sunday, April 21, 2013

स्वागत गान

स्वागत गान

आऊ - आऊ - आऊ सभक स्वागत करै छी,
नैन मे समाउ हृदयासन धरै छी ।

उल्लासक गीत कतऽ सगरो करूणा क्रन्दन,
उपटि रहल विपटि रहल मैथिलीक नन्दन वन,
भ्रमर झुण्ड प्यासल छथि विहग वृन्द बड़ भूखल,
मुरूझल छथि आम - मऽहु रऽसक सरिता सूखल,
बबुरे वन कवि कोकिल लाजे मरै छी ।
आऊ..........

विद्यापति शिव स्वरूप मृत्युंजय मऽरल छथि,
हमरा सबहक अभाग अजरो भऽ जऽड़ल छथि,
मात्र ई समारोही गोष्ठी सँकी हेतै ?
स्थिति जहिना तहिना संवत एतै जेतै
मुरदा जगाउ लाउ पैर पकड़ै छी,
आऊ..........

काव्य पाठ करू मुदा कान्ह पर लिअ लाठी,
एक हाथ रसक श्रोत दोसर मे खोर नाठी
पुरना किछु त्यागि - त्यागि पकड़ू किछु नऽव ढ़ंग
मोंछो पिजाउ बाउ श्रृंगारक संग - संग
अहाँ गीत गाउ मुदा हऽम हहरै छी,
आऊ..........

अहँक चपल चरण ऋृतुराजक सूचक अछि,
अपने आत्मस्वरूप आशय तऽ ‘बूचक’ अछि,
दीन हीन साधन सभ सँ विहीन यद्यपि हम,
उद्वेलित श्रद्धा समुद्र नहि तरंगो कम ।
शर्वरीश स्पर्शक लेल हहरै छी ।
अभ्यागत आउ सभक स्वागत करैछी ।
आऊ..........

विशेष:- ई छल विद्यापति स्मृति पर्व समारोह 1984 ( आयोजन स्थल - ग्राम - बैद्यनाथपुर प्रखंड रोसड़ा,जिला - समस्तीपुर ) मे आगत अतिथिक स्वागत मे स्व. कविकओहि कालक मैथिलीक दशा पर पीड़ा भरल प्रस्तुति ।

विरहीनी

. विरहिनी

रहि-रहि कऽ अहँक लेल देह फेर धयलहुँ अछि,
लागल अहींक एक ध्यान,
आऊ-आऊ रूसल हमर भगवान।

सहलहुँ कतेको हम जन्मक असह्य ज्वाल,
कहुना बितयलहुँ अछि मरणक बहु अंतराल,
मधुवन मे हे मोहन आइ हमर अवसर अछि,
राखि लिअ राधिका केर मान ।
आऊ............

वृन्दावन कुहरैछ यमुँना कनैछ हाय,
गोदावरी आँॅचर तर छाती हहरैछ आइ।
गोकुल मे लाख-लाख मोन बहटारल हम
तैयो बड़ व्याकुल परान ।
आऊ..............

अहँक रूप राखि नैन युग-युग सँ जागलि छी,
मुरलीक मधुर वैन गुनि-गुनिकऽ पागलि छी।
परकीया पतिता हम प्रेमक पुजारिन केॅ,
नहि - चाहि गीताक ज्ञान।
आऊ........

जकरा छै लागल हा विरहक प्रचंड रोग,
तकरा की कऽ सकतै निष्कामी कर्मयोग।
हमरा लग अपने छी चीर नवनीत चोर
अंतः बनू बरू महान।
आऊ............

अहँक लेल अपयश केॅ जीवन मे जोगि लेब,
पापो जौं लागत तऽ नरको केॅ भोगि लेब,
इच्छा नहि मृत्युक अपवर्गक आ स्वर्गक अछि,
अहँक छाड़ि चाही ने आन,
आऊ.................

आउ, हमर राम प्रवासी

. आउ हमर हे राम प्रवासी
आउ हमर हे राम प्रवासी
व्‍याकुल जनक , वि‍ह्वला जननी,
पड़ल अवधपर अधि‍क उदासी
आउ हमर हे राम प्रवासी ? ।

धि‍क् धि‍क् जीवन दीन , अहाँ बि‍नु
बीतल बर्ख मुँदा जीवै छी
जीर्ण-शीर्ण मोनक गुदड़ीकेँ
स्‍वार्थक सूइ भोँकि‍ सीबै छी
नि‍ष्‍ठुर पि‍ता पड़ल छथि‍ घरमे
कोमल पुत्र वि‍कल वनवासी
आउ , हमर हे राम, प्रवासी।

दुर्दिन कैकेयी बनि‍ कऽ
हे तात , अहाँकेँ वि‍पि‍न पठौलनि‍
जाहि‍ चार तर ठार छलहुँ
तकरापर दुर्वह भार खसौलनि‍
गृह वि‍हीन बनलहुँ अनाथ हा ,
हमर अभाग , मंथरा-दासी?
आउ , आउ हे राम, प्रवासी? ।

सोनक लंकापर वि‍जयी भऽ
सीता संग कखन घर अाएब ?
बीतल वि‍पि‍नक अवधि‍ , अपन
अ धि‍कार कहू कहि‍या धरि‍ पएब?
परि‍जन सकल भोग भोगथि‍ आ-
अहाँ बनल तपसी-सन्‍यासी ।
आउ , आउ, हे राम, प्रवासी? ।

भरत अहाँ वि‍नु पर्णकुटीमे
कुश आसनपर कानि‍ रहल छथि‍
अहँक पादुकाकेँ अवधक-
ऐश्‍वर्योसँ अधि‍ मानि‍ रहल छथि‍
थाकल चरण चापि‍ रगड़ब-
पदतल , बैसब पौथानक पासी।
आउ , आउ हे राम, प्रवासी?।

गीत

राम मंत्रवत अहँक नाम जपि-जपि दिवस बितावै छी,
रातुक बीच चान पर तपि-तपि ध्यान लगावै छी ।
कहू अहाँ की आन हमर छी,
देहक रूसल प्राण हमर छी
हे पाथरक देवता जागू
अहीं एक भगवान हमर छी
हम निर्दोष फूल तैयो निरमाल बनावै छी,
रातुक................

जाहि बाट केँ नित्य बहारी
हम तीतल आँचर सँ झारी,
जकरा अपना मे रखने अछि,
हमर आँखि ई कारी-कारी
आइ ताहि पर किएक अलसित गति सँ आवै छी
रातुक..........

हमरा लेल राजपद त्यागू
भवन छोड़ि कानन केॅ भागू,
पाछूक सीता सन सुन्नरि
दौड़ि पड़ि औ आगू-आगू,
प्यासल प्रेमक जलद मर्यादा किएक जगावै छी
रातुक.........

आऊ - आऊ हे प्रिय अभ्यागत
अछि पसरल हृदयासन स्वागत
प्रियतम अहँक पलकहुँ लकि सँ,
हमर जन्म जन्मान्तर जागत
लाऊ पखारि चरण नयन सँ जल छलकाबै छी,
रातुक.......................

Saturday, April 20, 2013

ऋतुराज

ऋतुराज

सोहर गावथि कोइली बहिना,
कीर मधुर ध्वनि बजबथि साज ।
जननी वीणा वादिनी हर्षित,
अवतार लेलनि सद्यः ऋृतुराज ।
गर्वित उपवन मधुपक गुंजन,
वर्णक पुष्पक दिव्य सोहनगर ।
सरिता लवलव शांत उदधि छथि,
मऽहु रसाल में उमड़ल मज्जर ।
माघक सातम धवल इजारियाँ,
भेल नवल ऋृतु नृप छठिहाँर ।
चिनुआर भरल पायस पूआ सँ,
कुलदेवी साजल उपहाँर ।
भगजोगिनी केर पंचम सुर सुनि,
आंगन महमह मुग्ध दलान ।
दशोदिशि मलमल गेना फूलल,
सरिसब बूट भरल खरिहाँन ।
रवि संग सुषमा अछिंजल उष्मा,
पात-पात पर पछवा वसात ।
विरहिनी बैसलि कंत आश मे
वयः ताप सँ उपटल गात ।
मातु उमा मन मुदित विभूषित,
सजल नुपूर चरण चमकल ।
शिवरात्रिक अवाहन भेलै,
नाथ कुशेश्वर छथि गमकल ।
संवत जड़ल आ होली आयल,
अबीर गुलाबी हरियर लाल ।
क्षितिज धरित्री एक बनल छथि,
ढ़ोलक डुग्गी झाॅझक ताल ।
छोट पैघ केर भेद मिटायल,
वृद्ध जुआन संग मे बाल ।
छोटकी कनियाँॅ ठोर रंगलि आ-
बऽरक भरल पान सँ गाल ।ं
भैयाँ भांग सुधा मे सानल,
शिथिल पड़ल छथि माॅझ ओसार ।

पहुना

".पहुना "
BY KALI KANT JHA BUCH
हमरो नेने चलियौ, अहाँ अपन गेह पहुना ।
हमहूॅ कऽ नेने छी, अहाँ सऽ सिनेह पहुना ।
अपने केॅ चाही वैदेही
हम सम देह एक ओ देही
हमरो तात बनल छथि देखू ने विदेह पहुना ।
हमरो ............... ­......
शून्य गगन केर श्याम घटा छी,
मरू पर उमड़ल दिव्य छटा छी,
मधुरी मुँस्की लागै विजुकी क रेह पहुना ।
हमरो ............... ­......
सभक जीवनक एक प्राण छी,
सगरो गगनक एक चान छी,
हहरै छाती जहिना सागरक रेहपहुना,
हमरो ............... ­......
हँसि हँसि अहाँ सँ नयन जुड़यलहुँ,
चलऽ काल हा ! ई की कयलहुँ
दशा कतऽ अछि मोन कतऽ ई देह पहुना
हमरो ............... ­......

दीनक नेना

दीनक नेना

देखहीं रौ बौआ , ई कौआ गबै छौ।
सुनहीं रौ तोरे , कुचरि सुनबै छौ।।
एम्हर तोँॅ सूतल छेँ माँझे ओसारपर ,
ओम्हर ओ नाँॅचै पुबरिया मोहारपर ,
पुरबा बसात बँसुरी बजबै छौ............. ­.. ।
सुनहीं रौ ............... ­।।
तोरा लय बनलौ ने बिस्कुट आ चाॅकलेट ,
नोनो रोटीसँ ने भरतौ ईगोल पेट ,
बातक मधुर स्वरलहरी अबै छौ............. ­.... ।
सुनहीं रौ ............... ­।।
बापे तोहर बनलौ परदेशी ,
चिट्ठी ने एलौ भेलौ दिन बेशी ,
माँक निनायल व्यथा जगबै छौ।
सुनही रौ ............।।
की बुझबेॅं ककरा कहै छै गरीबी ,
सपनोमे सुख नहिं जतऽ श्रमजीवी ,
लुत्ती लगा कऽ नगर बसवै छौ......... ।
सुनहीं रौ .............।।
कोरामे तोरा सुताबै छौ बिनियाँॅ
झटकल औ अबिहेँ रौ , नूनूक निनियाँ ,
तोहर उपास हमरा लजबै छौ , सुनहीं रौ ..............। ­

गौरी रहथु कुमारी

".गौरी रहथु कुमारी"


हएत नहि‍ ई वि‍याह हे,
गौरी रहथु कुमारी?
बर बूड़ल बौराह हे,
धि‍या शुचि‍ सुकुमारी
चामक सेज, कुगामक बासी
खन कैलाश, खनेखन काशी
लागथि‍ बुत्त भुताह हे,
गौरी रहथु कुमारी
मुँण्‍डक माल, ब्‍याल तन मंडि‍त
हस्‍त कपाल, मसानक पंडि‍त
अनुखन बि‍क्‍खक चाह हे,
गौरी रहथु कुमारी
यध्‍यपि‍ भाल सुधाकर, सुरसरि‍-
बहथि‍ बेहाल चरण धरि‍ झरि‍-झरि‍
तध्‍यपि‍ धहधह धाह हे,
गौरी रहथु कुमारी
कोठी कोठी भाङ भकोसथि‍
कामरि‍-कामरि‍ पानि‍ घटोसथि
आनक की नि‍रबाह हे,
गौरी रहथु कुमारी
भागलि‍, सखि‍गण सुनू कामेश्‍वर,
गि‍रि‍जा छथि‍‍ रूसलि‍ कोबर घर
जुनि‍ बनु एहेन बताह हे,
गौरी रहथु कुमारी
सासुर धरि‍ शि‍व भाभट समटू
परि‍छए ि‍दयऽ सुनू हे बङटू
बनलहुँ वर उमताह हे,
गौरी रहथु कुमारी

कपीश वंदना

".कपीश वंदना"
BY KALI KANT JHA BUCH

हमरापर तमाम दुरगंजन
अपने छी महान दुख भंजन
हे हनुमान, अथाह धारसँ
पार कऽ दि‍अ, उद्धार कऽ दि‍अ
हमरा पार.............
हम छी पति‍त पुरनका पापी
अएलहुँ शरण बनल संतापी
हे कपीश, हाथे धऽ हमरा
ठार कऽ दि‍अ, उद्धार कऽ दि‍अ
हमरा पार.........
पाबी अहँक अनमोल मंत्रणा
तखन सुकंठक कटल यंत्रणा
महावीर हमरोपर कनेक
वि‍चार कऽ लि‍अ उद्धार कऽ दि‍अ
छोड़व नहि‍ अपनेक आइ हम
दैत रहब रामक दुहाइ हम
“महामंत्र‍” केर हमरो गि‍रि‍मल-
हार दऽ दि‍अ, उद्धार कऽ दि‍अ
हमरा पार कऽ दि‍अ
उद्धार कऽ दि‍अ।

मणिद्वीपक महरानी

".मणिद्वीपक महरानी "
BY KALI KANT JHA BUCH

अयली जगदम्बा दुर्गा देवी कल्याणी अय,
मणिद्वीपक महरानी अय !
नाऽ ऽ ऽ।

सध्यः सुधा सिन्धु स्नात, मांजल गंगा जल सँ गात,
सेवक खातिर तजलनि नवरतनक रजधानी अय,
मणिद्वीपक ..........

टपि कऽ अट्ठारह प्राकार देवी भऽ गेली साकार
सभकेॅ सुना रहलि छथि अप्पन अभयावाणी अय,
मणिद्वीपक ..........

हरि पीताम्बर सँ पद झारथि,
विधि सुरसरि सँ चरण पखारथि,
तरबा रगड़ि रहल छथि, रहि - रहि शंकर ज्ञानी अय,
मणिद्वीपक ..........

महिषासुरक आव की डऽर, माता छाड़ू सिंहक भऽर,
लोके राच्छस भऽ कऽ कऽ रहलै मनमानी अय,
मणिद्वीपक ..........

सरस्वती वंदना