काली कान्त झा "बूच"क रचना संसार मे अपनेक स्वागत अछि

Saturday, April 20, 2013

पहुना

".पहुना "
BY KALI KANT JHA BUCH
हमरो नेने चलियौ, अहाँ अपन गेह पहुना ।
हमहूॅ कऽ नेने छी, अहाँ सऽ सिनेह पहुना ।
अपने केॅ चाही वैदेही
हम सम देह एक ओ देही
हमरो तात बनल छथि देखू ने विदेह पहुना ।
हमरो ............... ­......
शून्य गगन केर श्याम घटा छी,
मरू पर उमड़ल दिव्य छटा छी,
मधुरी मुँस्की लागै विजुकी क रेह पहुना ।
हमरो ............... ­......
सभक जीवनक एक प्राण छी,
सगरो गगनक एक चान छी,
हहरै छाती जहिना सागरक रेहपहुना,
हमरो ............... ­......
हँसि हँसि अहाँ सँ नयन जुड़यलहुँ,
चलऽ काल हा ! ई की कयलहुँ
दशा कतऽ अछि मोन कतऽ ई देह पहुना
हमरो ............... ­......

No comments:

Post a Comment