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Sunday, April 21, 2013

आउ, हमर राम प्रवासी

. आउ हमर हे राम प्रवासी
आउ हमर हे राम प्रवासी
व्‍याकुल जनक , वि‍ह्वला जननी,
पड़ल अवधपर अधि‍क उदासी
आउ हमर हे राम प्रवासी ? ।

धि‍क् धि‍क् जीवन दीन , अहाँ बि‍नु
बीतल बर्ख मुँदा जीवै छी
जीर्ण-शीर्ण मोनक गुदड़ीकेँ
स्‍वार्थक सूइ भोँकि‍ सीबै छी
नि‍ष्‍ठुर पि‍ता पड़ल छथि‍ घरमे
कोमल पुत्र वि‍कल वनवासी
आउ , हमर हे राम, प्रवासी।

दुर्दिन कैकेयी बनि‍ कऽ
हे तात , अहाँकेँ वि‍पि‍न पठौलनि‍
जाहि‍ चार तर ठार छलहुँ
तकरापर दुर्वह भार खसौलनि‍
गृह वि‍हीन बनलहुँ अनाथ हा ,
हमर अभाग , मंथरा-दासी?
आउ , आउ हे राम, प्रवासी? ।

सोनक लंकापर वि‍जयी भऽ
सीता संग कखन घर अाएब ?
बीतल वि‍पि‍नक अवधि‍ , अपन
अ धि‍कार कहू कहि‍या धरि‍ पएब?
परि‍जन सकल भोग भोगथि‍ आ-
अहाँ बनल तपसी-सन्‍यासी ।
आउ , आउ, हे राम, प्रवासी? ।

भरत अहाँ वि‍नु पर्णकुटीमे
कुश आसनपर कानि‍ रहल छथि‍
अहँक पादुकाकेँ अवधक-
ऐश्‍वर्योसँ अधि‍ मानि‍ रहल छथि‍
थाकल चरण चापि‍ रगड़ब-
पदतल , बैसब पौथानक पासी।
आउ , आउ हे राम, प्रवासी?।

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