काली कान्त झा "बूच"क रचना संसार मे अपनेक स्वागत अछि

Tuesday, July 12, 2016

परिचय

नाम : शिव कुमार झा
उपनाम : टिल्लू

विधा : मैथिली आ हिन्दीक साहित्यकार आ समालोचक

जन्म : अपन मातृक बिहार प्रांतक बेगूसराय जिलाक मालीपुर गाँव मे ११ दिसंबर १९७३ केँ भेल .
पिता :स्वर्गीय काली कान्त झा बूच ( मैथिली साहित्यक चर्चित गीतकार )
माता : स्वगीया चन्द्रकला झा

पैतृक गाँव : बिहार प्रान्तक समस्तीपुर जिलाक रोसड़ा अनुमंडल अवस्थित प्रसिद्द गाँव करियन ( दार्शनिक उदयनाचार्यक जन्म भूमि ) .

शिक्षा : स्नातक प्रतिष्ठा,: स्नातकोत्तर , सूचना- प्राद्यौगिकी :

साहित्यिक परिचय :
सदस्य, "साहित्य प्रकोष्ठ" मिथिला सांस्कृतिक परिषद जमशेदपुर
पूर्व सहायक संपादक विदेह मैथिली पत्रिका (अवैतनिक )
: सम्प्रति कार्यकारी संपादक , अप्पन मिथिला ( मुंबई से प्रकाशित मैथिली मासिक पत्रिका ) मे अवैतनिक कार्यकारी संपादक.
हिन्दीक चर्चित अंतर्जाल न्यूज़ पोर्टल " इंटरनेशनल न्यूज़ आ व्यूज कॉरपोरेशन" केर सलाहकार .
साहित्य अकादेमी भारत सरकार केर बाल साहित्य विषयक संगोष्ठी मे सहभागिता .

पुरस्कार / सम्मान :
मिथिला विभूति सम्मान ( मिथिला सांस्कृतिक परिषद् , जमशेदपुर २०१५ )

साहित्यिक उपलब्धि :
प्रकाशित कृति
१ अंशु : मैथिली समालोचना ( 2013 AD श्रुति प्रकाशन नई दिल्ली
२ क्षणप्रभा : मैथिली काव्य संकलन (2013 AD श्रुति प्रकाशन नई दिल्ली )

अप्रकाशित कृति :
१ सुधि प्रभंजन : मैथिली काव्य संग्रह
२ दृष्टि : मैथिली आलोचना और आलेख
३ आत्म उच्छ्वास : हिन्दी काव्य संकलन
एकर अतिरिक्त बहुत रास , क्षणिका , कथा , लघु-कथा, पद्य , हाइकू , टनका आदि विविध पत्र -पत्रिका मे प्रकाशित.

सम्प्रति :जमशेदपुर मे टाटा मोटर्स केर अधिशासी संस्था जे एम . ए. स्टोर्स लिमिटेड मे महाप्रबंधक पद पर कार्यरत .

स्थायी पता : ग्राम + पोस्ट : करियन
प्रखंड : शिवाजी नगर
भाया : इल्मासनगर
जिला : समस्तीपुर : ८४८११७ ( बिहार )

अधिवास : कलाकुंज ,
: रोड नंबर , ०३
: आदर्श नगर , समस्तीपुर : ८४८१०१

वर्तमान पता :
शिव कुमार झा
जे. एम . ए. स्टोर्स लिमिटेड
मैन रोड बिस्टुपुर
जमशेदपुर : ८३१००१

इ-मेल : shiva.kariyan@gmail.com
नचारी ( ०७.०६.२०१५ )
शिव कुमार झा टिल्लू 
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शिव नहि ठगना !
जग लेल क्षीर देल विख अपना 
शिव नहि ठगना !
अपने हिमासनपर नहि पलना
मृगछाला पाथरपर कत' अलना
शिव नहि ठगना !
दानेलेल सदति दृष्टि दान सपना
दयाद्रव्य कणकणमे भाव नपना
शिव नहि ठगना !
शैवक सिनेही शक्तिके' अर्चना
ओंकारक प्राणनाद ॐ वंदना
शिव नहि ठगना !
शंकर साकार नहि अलभ कल्पना
कर्मी जगसेवीके' पुरथि सपना
शिव नहि ठगना !
शिवशक्ति प्रीतिजप नित करू ना
सौभाग्यक मदन द्वारि घर भरु ना
शिव नहि ठगना !
हमर मिथिला ( गीति -काव्य )
शिव कुमार झा टिल्लू 
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पछबे संग उड़ि आनक भल्गर भास एलै
कत' अपन देसिल वयनाक सुवास गेलै 
मिथिराजक सभ घरआँगनमे भोजक गीत
कुञ्ज -रंजना- पूनमक स्वर भ' रहलै तीत
कवि कोकिल भक्तिक पद अनसोहाँत भेलै
फूहड़ तानमे सिंघी पताली खेल खेलै !
बिच चुआठ मे गललै डाक वचन अनमोल
सलहेसक गाथा मिथिलासँ भेलै गोल
देकसी मारल लिपि हिमगिरि पर फहरेलै
हमर तिरहुता बागमतीमे उधिएलै !
उभय भारती चारु मठपर छथि पसरल
उदयन कुसुमांजलि ल' दक्खिन दिश ससरल
गिद्ध दृष्टि अपनेमे लड़ि क' अन्हरेलै
पैघ छोट भेदक बिच मैथिल ओझरेलै !
हे जननी जगदम्ब भवानी ! ( भगवती वंदना )
शिव कुमार झा टिल्लू 
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हे जननी जगदम्ब भवानी 
मात्र अहीं अबलम्ब भवानी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
सकल जगत के काल विनाशिनी
रौद्र रूप सभ संकट नाशिनी
हर हरि ब्रह्म तेज रुद्राणी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
पूर्ण भक्ति लग मुग्ध स्वरूपा
मायक प्रांजल मोहक रूपा
हम अबोध आँचर तर कानी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
लक्ष्मी बनि पालक संग विचरण
काली रूप काल तन सिहरन
गणपति रक्षक शिवक शिवानी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
वाकदेवी स्वर शब्दक चिंतन
ब्रह्मचारिणी तृष्णाके' मर्दन
महागौरि कल्मष कल्याणी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
बदलैत स्वरूप ( गीति काव्य )
शिव कुमार झा टिल्लू 
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नव प्रेमक शीतल छाँह नवल 
एकरे तर नेह करथि छलमल 
पुरना बनतथि दीनक गुदरी
नैका संग ई जीवन कलकल
आब बदलि गेल भौतिक स्वरुप
किए हेरब बिसरल अन्हकूप
हमरा लेल छूटल की केलथि
कर्मक फल तें ई सुख अनूप
जौं पाछु देखब त' कोना भोगब
प्रतिक्षण सौभाग्य सुखक ई पल !
रहू भरल पुरल औ युगक नाथ
जौं पूत अहीं सन- जग सनाथ
किए चरण धरब -ई दारुण द्रव
देह धंसत पाँक बिच पीटब माँथ
हाहि साध्यक संगम अहँक अंश
ई शक्ति अहाँके' अहींक सम्बल !
बदलैत स्वरूपक परिभाषा
एहि ठामने सम्बन्धक आशा
सभ काम मनोरथ हुअए सिद्ध
ई आशीष ने बूझब प्रत्याशा
स्वार्थक अर्णवकेँ रहू उपछैत
अछि क्षोभ मुदा कामना निर्मल !
प्री- मानसून 
शिव कुमार झा टिल्लू 
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राति बहल छल पुरबा वात
सिहकल हरियर गाछक पात
लागल अचके एलै मानसून
झहरय लागल टपटप बून
भोरमे पुनि वेअह पुरना हाल
गुमकी उमससँ लोक बेहाल
चटचट पछबा दारुण प्रभात
कत' गेल ओ शीत बसात
बड़बड़ाइत मौसम विज्ञान
छोड़ल वरखक दाबल तान
एकरा बुझू प्री- मानसून
सुनिते मुरुझल आश - प्रसून
नचारी ( ११.०६.२०१६ )
शिव कुमार झा टिल्लू 
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युगयुग उपछल हाहिक अर्णव आब भरू संतोख 
हे शिव ! दूर बसथु मृगतृष्णा आबहु शिव -दर्शन भरिपोख !
नश्वर जगतक शाश्वत किछु नहि तखन कोना ई त्रास
हे शिव ! पञ्चतत्वसँ बनल अधम तन सदति ग्रहण उच्छ्वास
आन्ह मनोरथ रास संयोगल बिनु कोनो धरी- धोख
हे शिव ! दूर बसथु मृगतृष्णा आबहु शिव -दर्शन भरिपोख !
जखन क' दृष्टि सहेजय दर्शन क्षणिक दिव्य संज्ञान
हे शिव ! पुनि मोहक मन पाछु धरय जौं घेरय भौतिक तान
आहिक वारिद बून भ' टपकल भीजल कामक मोख
हे शिव ! दूर बसथु मृगतृष्णा आबहु शिव -दर्शन भरिपोख !
आत्म सरित शिवशक्ति अमिय रस अष्टयाम नवदृष्टि
हे शिव ! बहुत भेल ई आन- अपन धुन आब समत्वक सृष्टि
ग्रहण करब सभ योग धुनक गुण देखब ने ककरो दोख
हे शिव ! दूर बसथु मृगतृष्णा आबहु शिव -दर्शन भरिपोख !
नचारी ( २१.०६.२०१६ )
शिव कुमार झा टिल्लू 
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सुनू शिव छथि एना !
मायक आँचर बापक छाहरि जेना !
संततिके ध्यान अंतरक अनमना
अमृत परकंठ विख लेल अपना
सुनू शिव छथि एना !
अपने उपास भक्त अन्नपूर्णा
दानीके अंकलागल आक ढ़ोलना
सुनू शिव छथि एना !
धथूरेसँ तिरपित उमाक रुसना
अपनाले' भस्म जगलेल भूषणा
सुनू शिव छथि एना !
अंतरके' भाव सुर असुर मे ना
समदर्शी बमशंभू " शिव " भोलना
सुनू शिव छथि एना !
दारुणले' अछि ने शिवदर्शन मना
भावक नवआशा गढ़ि देलथि कना
सुनू शिव छथि एना !
कजरी (युगल गीत )
शिव कुमार झा टिल्लू 
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अदरासँ पहिनेके' बदरा 
छीटूने विहनि धान सजना
धान सजना हो धान सजना हो
छीटूने विहनि धान सजना
गुनूने आब पोथी पतरा
खेतोके घुरल प्राण सजना !
क'हु धनी कथीसँ क्यारी बनेबै
कोदारिमे ने शान धनिया
रहतै ई परती उपासल
छथि लक्ष्मी अकान धनिया !
चलु प्रिय खुरपीसँ सीता सजेबै
वरनके राखब मान सजना
मिथिलाके नारीक शक्ति
आब देखत जहान सजना !
अहँक आँजुरमे ठेल्ला पड़त जौं
प्रियतमके उड़त प्राण धनिया
छोड़ि दियौ अही बरख खेती
रुसल छथि दिनमान धनिया !
सियाके धीया हम माटिक बेटी
अछि धर्मक संज्ञान सजना
दुहू शक्ति जुड़ा लिय' घेंटी
तखने त' विहान सजना !
दृष्टि फुजल अय प्राणपियरगरि
तनि गेलै वितान धनिया
सपनाके करबै सकारथ
ई कर्मक नवतान धनिया !
ककर गुमकी ?
शिव कुमार झा टिल्लू 
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गुमकी बढ़ैत गेल
लोक कह' लागल - अन्हेर भेल 
विकासक नवल आयाम
गवेषणक नकारात्मक परिणाम
क' देलक दिन वाम
ग्लोबल वार्मिंग !
ब्रह्माण्डसँ उपटि बनाऊ
दोसर भूमण्डल - रहबाक लेल
द' रहल अछि वार्निंग !
अपन देशक पृथ्वी सम्मेलनमे
भूगोलविदक मुखसँ
ई वैधानिक चेतावनी सुनि हँसल - आर्यकवि
ठामहि कर' लागल -नवल सर्जना
ई थिक परिणाम -
भौतिकताक भरल पूरल कोषसँ
अपवर्तित गरिमाक उत्तापक
किएक त' -
द्रव्य होईछ तापक परममित्र सुचालक
ई ओकरे गरमी थिक !
ओकर रचनापत्र पर नजरि पड़ल
सोच' लगलहुँ
ओ के छल ?
वामपंथी साहित्यकार
समरस अर्थवादी !
भौतिकताक संत्राससँ
पीड़ित गरानिक शिकार !!
वा वर्तमान तन्त्रक प्रचारक -
"निक दिन आबि गेल " - केर पुजारी
के छल नहि बूझि सकलहुँ ?
मुदा क' देलक बाध्य चिंतन करबाक लेल !!