काली कान्त झा "बूच"क रचना संसार मे अपनेक स्वागत अछि

Tuesday, July 12, 2016

सम्बन्ध- दर्शन 
शिव कुमार झा टिल्लू 
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कामिनीके फूल मुरुझायत हे तोड़ि राखू ने डाला 
फलकल चमेली मौलायत हे जौं गाँथि देब माला !
सुन्नर सुशील मात्र देख'क जोगक
शील अनुबन्धन तखन साध भोगक
असगुन बनि हिय औनायत हे जौं अनुचित नेबाला !
कृतिक अमावस अधिकारक दिवाली
संयोगल सुमन कहियो खोंटल ने माली
भृंगक लेल पाँखुर फुलायत हे बरु गुमकी बा पाला !
प्रेमक अहिवातक ने मोल लगबियौ
भावक रंगउपटनसँ पुरहरि सजबियौ
भौतिकसँ प्रीतिकेँ हिलकोरब त' होयत बान्हक देवाला !
विश्वासक सांगहमे आशा अछि बान्हल
एकरा उपारल ओ जीवनभरि कानल
मोनिक मुँह अपने भथायत हे भरु शंकाक नाला

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