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Tuesday, July 12, 2016

नचारी ( ११.०६.२०१६ )
शिव कुमार झा टिल्लू 
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युगयुग उपछल हाहिक अर्णव आब भरू संतोख 
हे शिव ! दूर बसथु मृगतृष्णा आबहु शिव -दर्शन भरिपोख !
नश्वर जगतक शाश्वत किछु नहि तखन कोना ई त्रास
हे शिव ! पञ्चतत्वसँ बनल अधम तन सदति ग्रहण उच्छ्वास
आन्ह मनोरथ रास संयोगल बिनु कोनो धरी- धोख
हे शिव ! दूर बसथु मृगतृष्णा आबहु शिव -दर्शन भरिपोख !
जखन क' दृष्टि सहेजय दर्शन क्षणिक दिव्य संज्ञान
हे शिव ! पुनि मोहक मन पाछु धरय जौं घेरय भौतिक तान
आहिक वारिद बून भ' टपकल भीजल कामक मोख
हे शिव ! दूर बसथु मृगतृष्णा आबहु शिव -दर्शन भरिपोख !
आत्म सरित शिवशक्ति अमिय रस अष्टयाम नवदृष्टि
हे शिव ! बहुत भेल ई आन- अपन धुन आब समत्वक सृष्टि
ग्रहण करब सभ योग धुनक गुण देखब ने ककरो दोख
हे शिव ! दूर बसथु मृगतृष्णा आबहु शिव -दर्शन भरिपोख !

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