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Tuesday, July 12, 2016

ठमकल पानिक आहि !
शिव कुमार झा टिल्लू 
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लोकक मारल 
टीस भरल आहिक संग कानि रहल छल 
ठमकल पानि
एक दिशि गन्हाइत खत्तामे
दोसर साफ़ कूलरमे
बेराबेरी पुछलहुँ दुन्नूसँ
आँखिसँ निकसैत नोरक गाथा !
एक्के तरहक जबाब
दुनूक ठमकल सूक्ष्म तरंगसँ उपटल
कानब कोना ?
आँखि कत' अछि हमरा
ओ त' देने अछि प्रकृति अहाँसभ कें
तें ने बरबाद क' रहल छी हमर अस्तित्व !
नोर कोना निसकत ई अछि हमर प्रकृति
तरल जीवनक
जेना राखब ओहिना रहब !
मुदा ! नीक लगितय जौं
छोड़ि देतहुँ स्वतंत्र
अपन धारक संग चलैत रहितहुँ
नहि लगितय कलंक
बेमारी उपटयबाक
अहाँ साफ़ पानि जमाबै छी
तखने पनकैत अछि डेंगू
हमरा जखन गन्हाबै छी
हैजा आ मलेरिया सन असाध्य
मुदा मात्र दीनक लेल ..
अहाँ साधनशील बचि जाइत छी
भौतिकताक बलें !
हमरा आहि अछि मुदा ..
मात्र जहानक लेल
अपन त' कोनो गति यति नहि
जत' स्वतंत्र छलहुँ ओतहु
देलहुँ बान्हि !
ओ बजैत रहल हम कनैत रहलहुँ
मुदा ! कहब ककरा ?

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